SIR

पिछले कुछ हफ्तों से सोशल मीडिया, न्यूज़ चैनल और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में एक नया शब्द ज़ोर-शोर से घूम रहा है – SIR. कोई इसे “सांप्रदायिक इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग” बता रहा है, कोई “सिलेक्टिव इंडिया रिव्यू”, तो कोई इसे सरकारी एजेंसियों की नई “स्ट्रैटेजिक इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट” का कोडवर्ड बता रहा है। लेकिन असल में SIR है क्या? और यह मुद्दा अचानक इतना वायरल क्यों हो गया?

SIR की असलियत क्या है?

SIR का पूरा नाम है Sensitive Information Report। यह भारत सरकार के गृह मंत्रालय और खुफिया एजेंसियों द्वारा तैयार की जाने वाली एक आंतरिक रिपोर्ट है, जिसमें देश के अलग-अलग हिस्सों से आने वाली “संवेदनशील” खबरों, सोशल मीडिया ट्रेंड्स, धार्मिक-जातिगत तनाव, विदेशी फंडिंग से जुड़े NGO और कुछ खास तरह की “एंटी-नेशनल” गतिविधियों की मॉनिटरिंग की जाती है।

यह कोई नई चीज़ नहीं है। UPA के समय में भी ऐसी रिपोर्ट्स बनती थीं – तब इन्हें “Communal Incident Report” या “Minority Affairs Monitoring” कहा जाता था। मोदी सरकार में इसका नाम और फॉर्मेट बदला गया है, और अब यह डिजिटल डैशबोर्ड के ज़रिए रियल-टाइम अपडेट होती है।

लेकिन विवाद क्यों?

विवाद की जड़ यह है कि कुछ “सेक्युलर” पत्रकारों और NGO ने दावा किया है कि SIR का इस्तेमाल खासकर मुस्लिम और ईसाई समुदाय के खिलाफ “टारगेटेड सर्विलांस” के लिए हो रहा है। उनका आरोप है कि:

  • मस्जिदों में होने वाले खुत्बे (सर्मन) को रिकॉर्ड किया जा रहा है
  • मदरसों में पढाई जाने वाली किताबों की लिस्ट मांगी जा रही है
  • कुछ राज्यों में “लव जिहाद” और “लैंड जिहाद” के नाम पर मुस्लिम परिवारों को नोटिस भेजे जा रहे हैं
  • क्रिश्चियन मिशनरी एक्टिविटी पर भी कड़ी निगरानी है

दूसरी तरफ सरकार और उसके समर्थक कहते हैं कि SIR दरअसल राष्ट्रीय सुरक्षा का टूल है। उदाहरण के तौर पर:

  • बंग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठ पर नजर
  • PFI जैसे प्रतिबंधित संगठनों की बची-खुची नेटवर्किंग को ट्रैक करना
  • केरल, बंगाल और असम में हो रही “डेमोग्राफिक चेंज” की मॉनिटरिंग
  • विदेश से आने वाला फंड जो कथित तौर पर धर्मांतरण या अलगाववाद में इस्तेमाल हो रहा है

दोनों पक्षों के दावे

विपक्ष और सेक्युलर खेमे का कहना है: यह रिपोर्ट अल्पसंख्यकों को डराने-दबाने का हथियार है। “लव जिहाद” और “लैंड जिहाद” जैसे शब्दों का कोई कानूनी आधार नहीं है। इससे समाज में नफरत बढ़ रही है।

सरकार और राष्ट्रवादी खेमे का कहना है: देश में हो रही जनसंख्या असंतुलन, अवैध घुसपैठ और धर्मांतरण की सुनियोजित साजिश को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। SIR कोई नया कानून नहीं, बल्कि पहले से चल रही मॉनिटरिंग को और सिस्टेमैटिक बनाता है।

ज़मीनी हकीकत

कई राज्यों में SIR के नाम पर कुछ स्थानीय प्रशासन जरूरत से ज्यादा उत्साह दिखा रहा है – यह सच है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और असम में कुछ मामले सामने आए हैं जहां बिना ठोस सबूत के नोटिस भेजे गए। लेकिन यह भी सच है कि पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में वैसी ही गतिविधियाँ हो रही हैं, जहाँ SIR का कोई असर नहीं दिखता क्योंकि वहाँ की राज्य सरकारें केंद्र के साथ कोऑपरेट नहीं कर रही हैं।

निष्कर्ष

SIR न तो कोई “इस्लामोफोबिया प्रोजेक्ट” है और न ही “हिंदू खतरे में” का अंतिम हथियार। यह एक प्रशासनिक टूल है, जिसका दुरुपयोग भी हो सकता है और सही इस्तेमाल भी। असली सवाल यह है कि क्या हम एक ऐसे भारत की तरफ बढ़ रहे हैं जहाँ सुरक्षा और स्वतंत्रता के बीच संतुलन बिगड़ रहा है? या फिर यह वही पुराना खेल है जहाँ हर सरकारी कदम को “फासिज्म” और हर चुप्पी को “तुष्टिकरण” बताया जाता है?

आप क्या सोचते हैं – SIR जरूरी है या खतरनाक?

लेखक: देश दर्पण संपादकीय टीम (हम न नफरत फैलाते हैं, न नजरें फेरते हैं – सिर्फ सच दिखाते हैं)

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