
दिल्ली के कूड़े के पहाड़: 2025 में भी विकराल, समाधान की रफ्तार सुस्त
नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के तीन प्रमुख लैंडफिल साइट्स — गाज़ीपुर, भलस्वा और ओखला — 2025 में भी राजधानी की सबसे बड़ी पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में शुमार हैं। केंद्र और दिल्ली सरकार द्वारा तय की गई समयसीमाएं नज़दीक आ चुकी हैं, लेकिन कूड़े के पहाड़ जैसे के जैसे खड़े हैं।
स्वास्थ्य और पर्यावरण पर खतरा बरकरार
इन कूड़े के ढेरों से उठने वाला जहरीला धुआं और लीचेट (कचरे से निकलने वाला जहरीला तरल) अब भी आसपास के इलाकों में रहने वाले हजारों लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहा है।
– भलस्वा लैंडफिल के पास रहने वाले लोगों ने बताया कि बीते महीनों में सांस लेने में तकलीफ, त्वचा रोग और बच्चों में संक्रमण के मामले बढ़े हैं।
– गाज़ीपुर साइट, जहां 2026 तक कूड़ा मुक्त करने का लक्ष्य था, वहां अब भी प्रतिदिन हज़ारों टन कचरा डाला जा रहा है।
– विशेषज्ञों के अनुसार, भूजल और मिट्टी दोनों की गुणवत्ता तेजी से गिर रही है।
सरकारी योजनाएं और हकीकत
2025 में सरकार ने “मिशन क्लीन दिल्ली” के तहत लैंडफिल साइट्स को हटाने और कचरे के निस्तारण में तकनीक आधारित समाधान लागू करने का दावा किया था।
– कचरा निस्तारण मशीनों की संख्या बढ़ाई गई है, लेकिन वर्तमान कचरे की मात्रा और नई आने वाली वेस्ट की दर को देखते हुए काम की गति अपर्याप्त है।
– ओखला साइट को 2024 तक कूड़ा मुक्त करने का लक्ष्य था, लेकिन साइट अब भी 50% से अधिक भरी हुई है।
आर्थिक और सामाजिक असर
– ओखला औद्योगिक क्षेत्र में प्रदूषण और बदबू के कारण कई कंपनियों ने संचालन बंद कर दिया है या स्थानांतरित होने की तैयारी में हैं।
– एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली को लैंडफिल साइट्स से होने वाले प्रदूषण के कारण सालाना करीब 500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।
समाधान की दिशा में क्या जरूरी है?
– नई लैंडफिल साइट्स की पहचान और तत्काल निर्माण की आवश्यकता है।
– कचरा प्रबंधन में नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
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– कूड़े के स्रोत पर ही छंटाई और रिसायक्लिंग की व्यवस्था को अनिवार्य किया जाए।
2025 की शुरुआत में भी दिल्ली के लैंडफिल पहाड़ राजधानी की सूरत बिगाड़ रहे हैं। समाधान की दिशा में प्रयास ज़रूर हुए हैं, लेकिन रफ्तार जरूरत के मुकाबले बहुत धीमी है। जब तक सरकार, नगर निगम और नागरिक मिलकर कूड़े की मूलभूत समस्या को समझकर कार्रवाई नहीं करेंगे, तब तक दिल्ली की हवा, पानी और ज़मीन तीनों ही खतरे में रहेंगे।