
22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित पहलगाम के बाइसरण घाटी में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। इस लोकप्रिय पर्यटन स्थल पर पांच सशस्त्र आतंकवादियों ने 26 पर्यटकों की बेरहमी से हत्या कर दी, जिसमें ज्यादातर हिंदू समुदाय के लोग शामिल थे। यह घटना 2008 के मुंबई हमले के बाद भारत में नागरिकों पर सबसे घातक हमला माना जा रहा है। बाइसरण, जिसे ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ के नाम से जाना जाता है, अचानक एक शांतिपूर्ण पर्यटन स्थल से कब्रगाह में तब्दील हो गया। इस हमले ने न केवल कश्मीर की नाजुक शांति को चुनौती दी, बल्कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को भी नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है।
घटना का विवरण: कैसे हुआ यह हमला?
दोपहर करीब 3 बजे, पांच आतंकवादी, जो एम 4 कार्बाइन और एके-47 से लैस थे, बाइसरण घाटी में घुसे। यह क्षेत्र घने पाइन जंगलों से घिरा हुआ है और केवल पैदल या घोड़े से पहुंचा जा सकता है, जिसने सुरक्षा व्यवस्था को कमजोर बना दिया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आतंकवादियों ने पर्यटकों को निशाना बनाया, उनकी धार्मिक पहचान पूछी, और फिर उनमें से पुरुषों को गोली मारी। एक महिला ने बताया कि उसके पति को सिर में गोली मारी गई, जबकि दूसरी उत्तरजीवी ने कहा कि आतंकियों ने उनके परिवार पर पीएम नरेंद्र मोदी का समर्थन करने का आरोप लगाया। एक वीडियो, जो एक पर्यटक ने अनजाने में बनाया, इस भयावह घटना का सबूत बन गया, जिसमें गोलीबारी और अफरा-तफरी साफ दिखाई देती है।
पीड़ितों की कहानी: मानवता का दर्द
हमले में मारे गए 26 लोगों में एक नौसेना लेफ्टिनेंट, जो अपनी शादी के छह दिन बाद पत्नी के साथ पहलगाम गया था, और एक मध्य प्रदेश का ईसाई निवासी शामिल था, जिसे इस्लामिक कलिमा पढ़ने के लिए कहा गया और फिर गोली मार दी गई। उसकी बेटी भी घायल हुई। पीड़ितों में छह महाराष्ट्र के निवासी थे, जिनके परिवारों ने गहरा दुख झेला। स्थानीय लोगों, खासकर घुड़सवारों ने 11 घायलों को बचाया और गुरुद्वारों ने शरण दी। यह घटना न केवल व्यक्तिगत नुकसान का प्रतीक है, बल्कि कश्मीर की मेजबानी की भावना को भी दर्शाती है।
जिम्मेदार कौन? रहस्य और आरोप
हमले की जिम्मेदारी सबसे पहले द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली, जो लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का एक छद्म संगठन माना जाता है। TRF ने दावा किया कि यह हमला कश्मीर में गैर-स्थानीय लोगों के बसने के खिलाफ था, जो 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद शुरू हुआ। हालांकि, चार दिन बाद TRF ने अपना दावा वापस ले लिया, जिसने सवाल उठाए कि असली साजिशकर्ता कौन हैं। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान पर आरोप लगाया, जिसे इस्लामाबाद ने खारिज कर दिया। हाल के हफ्तों में पाकिस्तानी सेना प्रमुख का कश्मीर को ‘हमारी जुगलर नस’ कहना और तहव्वुर राणा की प्रत्यर्पण की घटना ने तनाव को और बढ़ाया।
सुरक्षा में चूक: सवालों के घेरे में सरकार
पहलगाम जैसे पर्यटन स्थल पर इस तरह का हमला सुरक्षा व्यवस्था की बड़ी चूक को उजागर करता है। गृह मंत्रालय और खुफिया ब्यूरो ने स्वीकार किया कि बाइसरण घाटी में पुलिस अनुमति नहीं थी और क्षेत्र में सुरक्षा बलों की तैनाती अपर्याप्त थी। पर्यटन सीजन के चरम पर इस घटना ने सरकार की ‘कश्मीर में शांति’ की दावों पर सवाल उठाए। विशेषज्ञों का मानना है कि घने जंगलों और दुर्गम इलाकों में आतंकियों की घुसपैठ रोकने के लिए बेहतर निगरानी की जरूरत थी।
भारत-पाक तनाव: कूटनीति और जवाबी कार्रवाई
हमले के बाद भारत ने कड़े कदम उठाए। सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया गया, अटारी-वाघा सीमा बंद कर दी गई, और पाकिस्तानी राजनयिकों को निष्कासित किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकियों और उनके समर्थकों को ‘पृथ्वी के छोर तक’ सजा देने का वादा किया। पाकिस्तान ने इसे ‘युद्ध की धमकी’ करार दिया और अपने हवाई क्षेत्र को सीमित कर दिया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय, जिसमें अमेरिका और यूके शामिल हैं, ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की, लेकिन तनाव कम होने के आसार नहीं दिखते।
स्थानीय प्रतिक्रिया: एकजुटता और विरोध
कश्मीरियों ने इस हमले की निंदा की और सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किए। ‘नहीं मेरे नाम’ के नारे के साथ उन्होंने आतंकवाद को खारिज किया। PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शोक व्यक्त किया और पर्यटकों से घाटी लौटने की अपील की। स्थानीय लोगों ने घायलों की मदद की, लेकिन कश्मीरी छात्रों पर देश के अन्य हिस्सों में हमले की खबरों ने एकजुटता को चुनौती दी।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव: पर्यटन पर संकट
पहलगाम कश्मीर का आर्थिक रीढ़ है, जहां पर्यटन से लाखों लोग जुड़े हैं। हमले के बाद 80-90% बुकिंग रद्द हो गईं, और पर्यटक घाटी छोड़ रहे हैं। शाल-विक्रेता और घुड़सवार जैसे छोटे व्यापारियों का जीवन संकट में है। यह घटना लंबे समय तक कश्मीर की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है, खासकर जब पर्यटन उद्योग पटरी पर लौटने लगा था।
भविष्य का रास्ता: क्या सबक सीखा जाएगा?
यह हमला कश्मीर में आतंकवाद की नई रणनीति को दर्शाता है, जहां नागरिकों को निशाना बनाकर डर फैलाया जा रहा है। सरकार को सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करनी होगी, खासकर पर्यटन क्षेत्रों में। साथ ही, भारत-पाक वार्ता और आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाना जरूरी है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या यह घटना कश्मीर की शांति प्रक्रिया को और पीछे धकेलेगी या एकजुटता का सबक देगी?
निष्कर्ष: आंसुओं की घाटी
पहलगाम हमला केवल एक आतंकी घटना नहीं, बल्कि मानवता पर हमला है। 26 बेकसूर जिंदगियों की कुर्बानी ने कश्मीर की सुंदरता को खून से रंग दिया है। यह समय सरकार, समाज, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने का है। पहलगाम की चीखें हमें याद दिलाती हैं कि शांति की कीमत कितनी बड़ी है, और उसे बचाने की जिम्मेदारी हम सबकी है।