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नई दिल्ली, 1 मई 2025: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने लंबे समय से चली आ रही मांग को स्वीकार करते हुए जातिगत जनगणना को मंजूरी दे दी है। इस फैसले ने देश भर में, खासकर बिहार में, राजनीतिक और सामाजिक चर्चाओं को तेज कर दिया है, जहां विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। हालांकि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने चेतावनी दी है कि इस जनगणना का राजनीतिक उपयोग नहीं होना चाहिए। दूसरी ओर, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार से इस प्रक्रिया के लिए स्पष्ट समयसीमा की मांग की है।

आरएसएस का बयान: “राजनीति से दूर रहे जनगणना”

आरएसएस ने अपने बयान में कहा कि जातिगत जनगणना सामाजिक समानता और नीति निर्माण के लिए उपयोगी हो सकती है, लेकिन इसका दुरुपयोग राजनीतिक लाभ के लिए नहीं किया जाना चाहिए। संगठन के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “जातिगत जनगणना का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए डेटा संग्रह होना चाहिए, न कि वोट बैंक की राजनीति।”

राहुल गांधी की मांग: “समयसीमा हो स्पष्ट”

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस फैसले का स्वागत किया, लेकिन सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि बिना स्पष्ट समयसीमा और पारदर्शिता के यह कदम महज दिखावा साबित होगा। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “जातिगत जनगणना सामाजिक न्याय की दिशा में ऐतिहासिक कदम हो सकता है, लेकिन सरकार को इसकी समयसीमा और प्रक्रिया को जनता के सामने रखना होगा। हम इसका पालन सुनिश्चित करेंगे।”

बिहार में चुनावी मुद्दा

बिहार में, जहां विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज है, जातिगत जनगणना का मुद्दा केंद्र में आ गया है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और जनता दल (यूनाइटेड) ने इस फैसले का स्वागत किया है, लेकिन इसे लागू करने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। बिहार में पहले ही 2023 में नीतीश कुमार सरकार ने जातिगत सर्वेक्षण कराया था, जिसके आंकड़ों ने राज्य की राजनीति को नया रंग दिया था। अब केंद्र के इस कदम से विपक्ष को नया मुद्दा मिल गया है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा, “हमारी लड़ाई सामाजिक न्याय के लिए है। केंद्र को बिहार मॉडल से सीख लेनी चाहिए।”

क्या है जातिगत जनगणना?

जातिगत जनगणना में देश की आबादी के जाति-आधारित आंकड़े एकत्र किए जाएंगे, जो सरकारी योजनाओं, आरक्षण नीतियों, और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को और प्रभावी बनाने में मदद कर सकते हैं। आखिरी बार 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान जातिगत जनगणना हुई थी। इसके बाद से कई राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन इसकी मांग करते रहे हैं।

आगे की राह

केंद्र सरकार ने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि जनगणना कब शुरू होगी और इसे पूरा करने में कितना समय लगेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली हो सकती है, क्योंकि इसमें डेटा संग्रह, सत्यापन, और विश्लेषण शामिल होगा। साथ ही, विभिन्न राज्यों में अलग-अलग जातियों की पहचान और वर्गीकरण भी एक चुनौती होगी।

निष्कर्ष
जातिगत जनगणना का फैसला सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह कदम जहां सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा बदलाव ला सकता है, वहीं इसके गलत इस्तेमाल की आशंका भी जताई जा रही है। बिहार जैसे राज्यों में यह मुद्दा चुनावी रणनीतियों को प्रभावित कर सकता है। अब सभी की नजर सरकार की अगली घोषणा और इसकी कार्यान्वयन प्रक्रिया पर टिकी है।

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